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Work Study: Definition, Need and Advantages | Production Management

After reading this article you will learn about:- 1. Definition and Concept of Work Study 2. Need for Work Study 3. Advantages.

Work study, as defined by British Standard Institution, is a generic term for those techniques particularly ‘Method Study’ and ‘Work Measurement’ which are used in the examination of human work in all its contexts and which lead systematically to the investigation of all the factors which effect the efficiency of the situation being reviewed, in order to seek improvements.

Actually, work study investigates the work done अधिक लाभ की आवश्यकता है in an organisation and it aims at finding the best and most efficient way of using available resources, i.e., men, material, money and machinery. Every organisation tries to achieve best quality production in the minimum possible time.

ध्यान के 5 लाभ

  1. शांत चित्त
  2. अच्छी एकाग्रता
  3. बेहतर स्पष्टता
  4. बेहतर संवाद
  5. मस्तिष्क एवं शरीर का कायाकल्प व विश्राम

ध्यान के कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका प्राणतत्व (ऊर्जा) से भर जाती है। शरीर में प्राणतत्व के बढ़ने से प्रसन्नता, शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है।

ध्यान से शारीरिक स्तर पर होने वाले लाभ

  1. उच्च रक्तचाप का कम होना, रक्त में लैक्टेट का कम होना, उद्वेग/व्याकुलता का कम होना।
  2. तनाव से सम्बंधित शरीर में कम दर्द होता है। तनाव जनित सिरदर्द, घाव, अनिद्रा, मांशपेशियों एवं जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है।
  3. भावदशा व व्यवहार बेहतर करने वाले सेरोटोनिन हार्मोन का अधिक उत्पादन होता है।
  4. प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार आता है।
  5. ऊर्जा के आतंरिक स्रोत में उन्नति के कारण ऊर्जा-स्तर में वृद्धि होती है।

ध्यान, मस्तिष्क की तरंगों के स्वरुप को अल्फा स्तर पर ले आता है जिससे चिकित्सा की गति बढ़ जाती है। मस्तिष्क पहले से अधिक सुन्दर, नवीन और कोमल हो जाता है। ध्यान मस्तिष्क के आतंरिक रूप को स्वच्छ व पोषण प्रदान करता है। जब भी आप व्यग्र, अस्थिर और भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं तब ध्यान आपको शांत करता है। ध्यान के सतत अभ्यास से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:

ध्यान के 3 आध्यात्मिक लाभ

ध्यान का कोई धर्म नहीं है और किसी भी विचारधारा को मानने वाले इसका अभ्यास कर सकते हैं।

    अधिक लाभ की आवश्यकता है
  1. मैं कुछ हूँ इस भाव को अनंत में प्रयास रहित तरीके से समाहित कर देना और स्वयं को अनंत ब्रह्मांड का अविभाज्य पात्र समझना।
  2. ध्यान की अवस्था अधिक लाभ की आवश्यकता है में आप प्रसन्नता, शांति व अनंत के विस्तार में होते हैं और यही गुण पर्यावरण को प्रदान करते हैं, इस प्रकार आप सृष्टी से सामंजस्य में अधिक लाभ की आवश्यकता है स्थापित हो जाते हैं।
  3. ध्यान आप में सत्यतापूर्वक वैयक्तिक परिवर्तन ला सकता है। क्रमशः अधिक लाभ की आवश्यकता है आप अपने बारे में जितना ज्यादा जानते जायेंगे, प्राकृतिक रूप से आप स्वयं को ज्यादा खोज पाएंगे।

जैविक खेती आज की आवश्यकता क्यों ?

28 सितम्बर 2022, जैविक खेती आज की आवश्यकता क्यों ? – जैविक खेती, खेती की पारम्परिक तरीके को अपनाकर भूमि सुधार कर उसे पुनर्जीवित करने का स्वच्छ तरीका है। इस पद्धति से खेती करने में, बिना रसायनिक खादों, सिंथेटिक कीटनाशकों, वृद्धि नियंत्रक, तथा प्रतिजैविक पदार्थों का उपयोग वर्जित होता है। इनके स्थान पर किसान स्थानीय उपलब्धता के आधार पर फसलों द्वारा छोड़े गए बायोमास का उपयोग करते हैं, जो भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ उर्वरता बढ़ाने का भी काम करता है। आर्गेनिक वल्र्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया। जिसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती से वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण अधिक रसायनिक खादों एवं कीटनाशकों से होने वाला दुष्प्रभाव हैं, जिसने भारत सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित किया।

भारत में गहन कृषि की आवश्यकता

भारत में निरंतर बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न की समस्या को हल करना एक बड़ी चुनौती बनाता जा रहा है। आज खेती योग्य भूमि कम हो होती जा रही है और खाद्यान्न की मांग अधिक है। ऐसे में भारत जैसे देश में सघन खेती को अपनाकर बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाकर उसकी पूर्ति की जा सकती है। वहीं इस विधि से खेती करके किसान अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।

भारत में सघन खेती को अपनाने में क्या है बाधाएं

भारत में सघन खेती को अपनाने में कई बाधाएं हैं। इनमें से कुछ बाधाएं या समस्याएं इस प्रकार से हैं-

  • पूंजी की समस्या- भारत में सघन खेती अधिक लाभ की आवश्यकता है को अपनाने में सबसे बड़ी बाधा पूंजी की है। यहां का अधिकांश किसान लघु व सीमांत किसान है। जिनके पास फसल उत्पादन लागत लगाने के लिए पूंजी की समस्या रहती है। जबकि सघन खेती में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।
  • सिंचाई के साधनों का अभाव- भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर है। यहां अधिक लाभ की आवश्यकता है सिंचाई के साधनों का अभाव है जिसके कारण यहां इस सघन खेती को अपनाना संभव नहीं है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर सिंचाई के साधन को विकसित करने का प्रयास कर रही है। देश की नदियों को जोडऩे का काम जारी है जो एक लंबा कार्यक्रम है।
  • किसानों को नई तकनीक की जानकारी न होना- भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का ठीक से प्रसार नहीं हो पाया है। आज भी गांव के कई किसान अशिक्षित है। उन्हें खेती की उन्नत तकनीक और विधियों का ज्ञान नहींं है। ऐसे में सघन खेती को अपनाना उनके लिए एक बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
  • अधिक लाभ की आवश्यकता है
  • खेतों का दूर-दूर फैले होना- भारत के ग्रामीण इलाकों में खेत दूर-दूर फैले हुए अधिक लाभ की आवश्यकता है है और आकार में भी छोटे है। इसलिए भारतीय कृषि का यंत्रीकरण करना आसान नहीं है।

सघन खेती में ध्यान रखने योग्य बातें

  • सघन खेती की विधि के तहत छोटी किस्म के फल वृक्षों को लगाना चाहिए ताकि कम जगह पर ज्यादा पौधे लगाए जा सकें। जिससे भूमि का अधिक से अधिक उपयोग हो सके।
  • फल वृक्षों में कम वृद्धि होनी चाहिए ताकि दूसरे फल वृक्ष को फैलने की जगह मिल सके।
  • मूलवृंत ऐसा होना चाहिए जो छोटा पौधा दे सके ताकि इसे कम जगह पर आसानी से लगाया जा सके।
  • वृक्षों की वृद्धि रोकने के लिए वृद्धि रोधक हारमोन का प्रयोग करना चाहिए।
  • समय- समय पर टहनियों की कटाई-छंटाई का काम करते रहना चाहिए ताकि पेड़ों का आकार ज्यादा न बढ़ सके।
  • दस से बाहर वर्ष बाद यदि सघन खेती में एक-दूसरे पेड़ों की टहनियां तथा जड़ आपस में उलझने लगे तो बीच में एक लाइन पेड़ों की काटी जा सकती है।


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अधिक लाभ की आवश्यकता है

खून चढाने की जरूरत:-

जीवन बचाने के लिए खून चढाने की जरूरत पडती है। दुर्घटना, रक्‍तस्‍त्राव, प्रसवकाल और ऑपरेशन आदि अवसरों में शामिल है, जिनके कारण अत्‍यधिक खून बह सकता है और इस अवसर पर उन लोगों को खून की आवश्‍यकता पडती है। थेलेसिमिया, ल्‍यूकिमिया, हीमोफिलिया जैसे अनेंक रोगों से पीडित व्‍यक्तियों के शरीर को भी बार-बार रक्‍त की आवश्‍यकता रहती है अन्‍यथा उनका जीवन खतरे में रहता है। जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है।

रक्‍तदान की आवश्‍यकता:-

इस जीवनदायी रक्‍त को एकत्रित करने का एकमात्र् उपाय है रक्‍तदान। स्‍वस्‍थ लोगों द्वारा अधिक लाभ की आवश्यकता है किये गये रक्‍तदान का उपयोग जरूरतमंद लोगों को खून चढानें के लिये किया जाता है। अनेक कारणों से जैसे उन्‍नत सर्जरी के बढतें मामलों तथा फैलती जा रही जनसंख्‍या में बढती जा रही बीमारियों आदि से खून चढाने की जरूरत में कई गुना वृद्वि हुई है। लेकिन रक्‍तदाताओं की कमी वैसी ही बनी हुई है। लोगों की यह धारणा है कि रक्‍तदान से कमजोरी व नपूसंकता आती है, पूरी तरह बेबूनियाद है। आजकल चिकित्‍सा क्षेत्र में कॅम्‍पोनेन्‍ट थैरेपी विकसित हो अधिक लाभ की आवश्यकता है रही है, इसके अन्‍तर्गत रक्‍त की इकाई से रक्‍त के विभिन्‍न घटकों को पृथक कर जिस रोगी को जिस रक्‍त की आवश्‍यकता है दिया जा सकता है इस प्रकार रक्‍त की एक इकाई कई मरीजों के उपयोग में आ सकती है।

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